कभी हरियंक के नाम से जाना जाता था हरियाणा

सर जेफरी कॉर्बर्ट ने दिया था पंजाब के पुनर्गठन का सुझाव 


हरियाणा और पंजाब एक ही परिवार का हिस्सा रहे हैं। थोड़ा सा बोली का अंतर महसूस होता है वह भी कहीं कहीं। हरियाणा सरकार के मुताबिक हरियाणा के नाम का भी अपना विशेष इतिहास है। हरियाणा शब्द के नाम की उत्पत्ति के संबंध में विविध व्याख्याएं भी हैं। 
हरियाणा सरकार के सूत्र बताते हैं कि हरियाणा एक प्राचीन नाम है। पुरानी समय में इस क्षेत्र को ब्रह्मवर्त, आर्यवर्त और ब्रहमोप्देस के नाम से जाना जाता था। ये नाम हरियाणा की भूमि पर ब्रह्मा-देवता के उद्भव पर आधारित हैं अर्थात आर्यों का निवास और वैदिक संस्कृतियों और अन्य संस्कारों के उपदेशों का घर | प्रोफेसर एच. ए. फडके के अनुसार, “विभिन्न लोगों और जातियों के बीच मिलकर, समग्र भारतीय संस्कृति के निर्माण में हरियाणा का योगदान अपने तरीके से उल्लेखनीय रहा है| महत्वपूर्ण रूप से, इस क्षेत्र को सृजन के मैट्रिक्स और पृथ्वी पर स्वर्ग के रूप में सम्मानित किया गया है। इस तरह हरियाणा के नाम की खोज में बहुत पीछे जाना पड़ता है। आर्यों के निवास और वैदिक संस्कृतियों के उस युग तक। 

कुछ और भी कहा जाता है नाम को ले कर। इसके अन्य नाम बहुधान्याका और हरियंका खाद्य आपूर्ति और वनस्पति की बहुतायत का सुझाव भी देते हैं”। रोहतक जिले के बोहर गांव से मिले शिलालेख केअनुसार, इस क्षेत्र को हरियंक के नाम से जाना जाता था।  

हरियाणा के इतिहास की खोज करने वाले सूत्रों के मुताबिक वर्ष 337 विक्रम संवत के दौरान बलबन की अवधि से शिलालेख संबंधित है। बाद में, सुल्तान मोहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में पाए गए पत्थर पर ‘हरियाणा’ शब्द अंकित किया गया था। इसी संबंध में धरणिधर अपने कार्य अखण्ड प्रकाश में कहते हैं कि “यह शब्द हरिबंका से आता है और हरि की पूजा व भगवान इंद्र से जुड़ा हुआ है। चूंकि सूखा भूभाग है, इसके लोग हमेशा इंद्र (हरि) की बारिश के लिए पूजा करते हैं “। इस तरह इंद्र देव की पूजा से भी  इस नाम का इतिहास। 

एक अन्य विचारक, गिरीश चंदर अवस्थी, ऋग्वेद से इसकी उत्पत्ति का सुराग लगाते हैं कि जहां हरियाणा नाम को योग्यता के लिए राजा (वासुराजा) विशेषण के रूप में  प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि राजा ने इस क्षेत्र पर शासन किया और इस तरह से इस क्षेत्र को उसके बाद हरियाणा के नाम से जाना जाने लगा।

पंजाब से अलग होने के प्रयास भी बहुत देर पहले शुरू हो चुके थे। सन 1928 की बातें हैं जब दिल्ली में सभी पार्टियों के सम्मेलन में फिर से दिल्ली की सीमाओं के विस्तार की मांग की गई। इस तरह क्षेत्रों और राज्यों के पुनर्गठन के सिलसिले भी काफी पुराने लगते हैं। उसी दिल्ली सम्मेलन की बातें करें तो अतीत बहुत कुछ बताता है। 

उन दिनों में ही हरियाणा के कुछ प्रमुख नेताओं जैसे पं. नेकी राम शर्मा, लाला देशबंधु गुप्ता और श्री राम शर्मा ने गांधी जी से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि हरियाणा क्षेत्र के जिलों को दिल्ली के साथ विलय किया जाए इसी तरह सन 1931 में, द्वितीय गोल मेज़ सम्मेलन में, तत्कालीन पंजाब सरकार के वित्तीय आयुक्त और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सचिव सर जेफरी कॉर्बर्ट ने पंजाब की सीमाओं के पुनर्गठन और पंजाब से अंबाला डिवीजन को अलग करने का सुझाव दिया।  उन्होंने तर्क दिया कि “ऐतिहासिक रूप से अंबाला डिवीजन तत्कालीन हिंदुस्तान का हिस्सा था और इसका तत्कालीन पंजाब प्रांत में शामिल करना ब्रिटिश शासन द्वारा की गई घटना थी।” इस तरह बहुत से पहलू सामने आते हैं जो बहुत से लोगों के लिए अभी भी नए हैं। 

जल विवाद और कुछ अन्य मुद्दों के बावजूद आज हरियाणा और पंजाब अच्छे पड़ोसी हैं। भाईयों की तरह ही है इनका संबंध। बातें कभी कुछ खट्टी हो जाती हैं और कभी मीठी हो जाती हैं। इस तरह कुछ और बातें आप जान सकते हैं हरियाणा सरकार के वेब मंच से। 

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